"इतनी बुरी हूँ क्या मैं माँ, मुझे भेज रही हो पराये घर।
जब मैं छोटी बच्ची थी, मेरी हर अदा तुझे प्यारी लगती थी।
मुझे गोद में लेने को हर पल, तेरी बाहें मुझे बुलाती थी।
मुझे रोता हुआ देखकर, तेरी जान निकल जाती थी।
अब ऐसा क्या हुआ है माँ, मुझे भेज रही हो पराये घर।
चाहें जिद की हो मैंने गुड़िया की, चाहें की हो जिद नए खिलौनों की।
तूने हर जिद को मेरी पूरा किया, मेरी ख्वाहिशों को दी नई राह।
मेरी खुशियों में ही देख रहीं थी, अपने जीने की एक नयी वजह।
अब ऐसा क्या हुआ है माँ, मुझे भेज रही हो पराये घर।
जब मैं छोटी बच्ची थी, मेरी हर अदा तुझे प्यारी लगती थी।
मुझे गोद में लेने को हर पल, तेरी बाहें मुझे बुलाती थी।
मुझे रोता हुआ देखकर, तेरी जान निकल जाती थी।
अब ऐसा क्या हुआ है माँ, मुझे भेज रही हो पराये घर।
चाहें जिद की हो मैंने गुड़िया की, चाहें की हो जिद नए खिलौनों की।
तूने हर जिद को मेरी पूरा किया, मेरी ख्वाहिशों को दी नई राह।
मेरी खुशियों में ही देख रहीं थी, अपने जीने की एक नयी वजह।
अब ऐसा क्या हुआ है माँ, मुझे भेज रही हो पराये घर।
वादा करती हूँ मैं माँ, कोई जिद न करुँगी आगे से।
घर के सारे काम करुँगी, तेरा पूरा ख्याल रखूंगी।
तेरी अच्छी बिटिया बनूँगी, कोई अश्क न तेरे आने दूँगी।
तेरी हर बात को मैं मानूँगी माँ, मुझे भेज न यूँ पराये घर।
बाते ऐसी सुनकर बिटिया की, माँ का तो दिल भर आया।
सीने से लगाकर बेटी को,माँ ने उसको यूँ समझाया।
ये रीति है ऐसी दुनिया की, जो हर एक माँ को निभानी है।
बेटी का बसाना है घर,इसलिये भेज रही हूँ पराये घर।
तू तो है मेरी अच्छी गुड़िया , मेरे हर ख्वाब को तूने पूरा किया।
मेरे इस आँचल को तूने,अपने प्यार से भर है दिया।
तू तो है मेरे दिल का टुकड़ा, मेरे अरमानों को तूने पूरा किया
नम आँखों से विदा कर रही हूँ मैं, तुझे भेज रही हूँ पराये घर।
खुश रहे तू हर पल उस घर में,ये दुआ है मेरी अपने रब से।
फूलों की तरह मुस्कुराती रहे तू, काँटो की कोई न रहे जगह
भविष्य तेरा भरा रहे प्यार से, ग़म की कोई न हो वजह।
मंगलमय तेरा जीवन हो, इसलिए भेज रही हूँ पराये घर।"
By:Dr Swati Gupta