Wednesday 9 December 2015

Emotional conversation between mother and daughter..

"इतनी बुरी हूँ क्या मैं माँ, मुझे भेज रही हो पराये घर।
जब मैं छोटी बच्ची थी, मेरी हर अदा तुझे प्यारी लगती थी।
मुझे गोद में लेने को हर पल, तेरी बाहें मुझे बुलाती थी।
मुझे रोता हुआ देखकर, तेरी जान निकल जाती थी।
अब ऐसा क्या हुआ है माँ, मुझे भेज रही हो पराये घर।
चाहें जिद की हो मैंने गुड़िया की, चाहें की हो जिद नए खिलौनों की।
तूने हर जिद को मेरी पूरा किया, मेरी ख्वाहिशों को दी नई राह।
मेरी खुशियों में ही देख रहीं थी, अपने जीने की एक नयी वजह।
अब ऐसा क्या हुआ है माँ, मुझे भेज रही हो पराये घर।
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वादा करती हूँ मैं माँ, कोई जिद न करुँगी आगे से।
घर के सारे काम करुँगी, तेरा पूरा ख्याल रखूंगी।
तेरी अच्छी बिटिया बनूँगी, कोई अश्क न तेरे आने दूँगी।
तेरी हर बात को मैं मानूँगी माँ, मुझे भेज न यूँ पराये घर।
बाते ऐसी सुनकर बिटिया की, माँ का तो दिल भर आया।
सीने से लगाकर बेटी को,माँ ने उसको यूँ समझाया।
ये रीति है ऐसी दुनिया की, जो हर एक माँ को निभानी है।
बेटी का बसाना है घर,इसलिये भेज रही हूँ पराये घर।
तू तो है मेरी अच्छी गुड़िया , मेरे हर ख्वाब को तूने पूरा किया।
मेरे इस आँचल को तूने,अपने प्यार से भर है दिया।
तू तो है मेरे दिल का टुकड़ा, मेरे अरमानों को तूने पूरा किया
नम आँखों से विदा कर रही हूँ मैं, तुझे भेज रही हूँ पराये घर।
खुश रहे तू हर पल उस घर में,ये दुआ है मेरी अपने रब से।
फूलों की तरह मुस्कुराती रहे तू, काँटो की कोई न रहे जगह
भविष्य तेरा भरा रहे प्यार से, ग़म की कोई न हो वजह।
मंगलमय तेरा जीवन हो, इसलिए भेज रही हूँ पराये घर।"
By:Dr Swati Gupta

This poem is dedicated to my husband..

"तुम अगर साथ हो मेरे, तो जिंदगी का सफ़र आसान होगा।
रास्ते हो कितने भी मुश्किल, तुम हर पल मेरे साथ होंगे।
तेरा साथ पाकर, काँटों में भी फूल खिल जायेंगे।
तेरे प्यार से गम भी, खुशियों में बदल जायेंगे।
तुम अगर साथ हो तो, जिंदगी की हर चुनौतियों में खरे उतर जायेंगे।
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इस अंधेरे में भी, रोशनी के दीप जल जायेंगे।
हम अपने ख्वाबों को भी, हकीकत में बदल जायेंगे।
अपने घर को भी, प्यार से महका पायेंगे।
अपने बच्चों को जीवन की, हर ख़ुशी दे पायेंगे।
तुम अगर साथ हो तो, जिंदगी की हर चुनौतियों में खरे उतर जायेंगे।"

By: Dr Swati Gupta

Monday 7 December 2015

A lesson by flower..

फूल सभी को भाते हैं और कांटे दर्द दे जाते हैं।
इसलिए फूलों की इच्छा रखने वाले काँटो को दूर हटाते हैं।
हम नादान ये समझ नहीं पाते है।
काँटे ही फूलों का सहारा बन जाते हैं।
कोई अस्तित्व न होता फूलों का, अगर काँटे साथ न होते।
इसी तरह अगर दुःख का पता न होता,
सुख का अनुभव कैसे कर पाते।
एक सिक्के के दो है पहलू ।
जब दुःख निराशा लेकर आता है।
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उसके बाद का सुख फिर सबको भाता है।
खुशबू लेनी है फूलों की तो काँटो को भी सहना सीखो।
खुशियां लेनी है जीवन में सुख की।
तो दुःख से डटकर लड़ना सीखो।
यही सन्देश फूल हम सबको काँटे सहकर समझाकर जाता है।
और जिसने इसपर अमल किया वो जीवन की हर खुशियां पाता है।
By:Dr Swati Gupta

This poem is about Today’s friendship..

“आजकल दोस्ती के मायने बदल गए।
कल तक जो की जाती थी दिल से,
आज दिमाग का खेल हो गयी।
कल तक जो इमोशन्स में बंधी थी,
आज प्रैक्टिकल हो गयी।
और दोस्ती तो यहाँ मतलब की चीज़ हो गयी।
वो हमको दोस्ती के पैमाने बताते रहे।
हम तो इतने बेबस थे अपनी तकलीफो में,
कि सौ नस्तर चुभवा कर भी मुस्कुराते रहे।
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अपने दोस्तों के घर ख़ुशी के ठहाके लगाते रहे।
और उन्हें अहसास भी न हुआ हमारे दर्द का,
वो हमारे दुःख में भी मुस्कुराते रहे ।
कभी एक दोस्त का दर्द दूसरे दोस्त की आँखों में नजर आता था,
और वो दोस्त के दुःख पर आँसू बहाता था,
क्योंकि वो रिश्ता दिल का रिश्ता बन जाता था।
अब तो दोस्ती टाइम पास की चीज हो गयी,
और दूसरे दोस्त की जरूरतों की मशीन हो गयी।
क्योंकि कल तक जो की जाती थी दिल से,
आज दिमाग का खेल हो गयी।”
By: Dr Swati Gupta

Thursday 3 December 2015

This poem is against the dowry system in India..

“दहेज़ प्रथा समाज पर भार है,
जिसमें दबा हुआ कन्या का परिवार है।
बेटे के पैदा होते ही घर में खुशियां छा जाती,
पर बेटी दहेज़ के कारण एक समस्या बन जाती।
ये कैसा अत्याचार है ये कैसा अत्याचार है।
पैसों की आड़ में बसता नया परिवार है,
जिसमे कई बार बिकता लड़की वालों का घरवार है।
मातापिता विदा करते हैं बेटी को इस आस में,
कि खुश रहेगी बेटी अपनी ससुराल में,
पर दहेज़ के लोभी उस बेटी को सताते हैं हर हाल में।
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ये कैसा अत्याचार है ये कैसा अत्याचार है।
जब मानसिक पीड़ा बेटी सह नहीं पाती है,
तो आत्महत्या करने को विवश हो जाती है।
कई बार दहेज़ के लालची मानवता से गिर जाते है,
और अग्नि के हवन कुण्ड में बहु की आहुति देने से भी नहीं कतराते हैं।
ये कैसा अत्याचार है ये कैसा अत्याचार है।
दहेज़ प्रथा समाज पर भार है,
जिसमे दबा हुआ कन्या का परिवार है।
इस भार से समाज को मुक्त कराना होगा,
दहेज़ रुपी दानव को मार भगाना होगा।
तभी हम बेटा बेटी के फर्क को मिटा पायेंगे,
और दोनों के जन्म पर समान खुशियाँ मना पाएँगे।”
By: Dr Swati Gupta

Chennai Flood..

“प्रकति का कोप कहर ढा रहा है।
चेन्नई में बाढ़ के रूप में नजर आ रहा है।
दिन गुजर रहे हैं बारिश थमती नही।
सूरज की रौशनी कही दिखती नहीं।
जीवन अस्त व्यस्त हो चला है।
काम सब रुक गए हैं।
सब्जियों के भाव आसमा चढ़ गए हैं।
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कुदरत का कहर कुछ इस तरह मच रहा है।
ग़रीबो का रहना दुश्वर हो चला है।
प्रकति का कोप बढ़ाया है हमने।
पेड़ो को काटकर बिल्डिंगों को बनाया है हमने।
प्रदूषित की है हमने धरती ये सारी।
उपजाऊ जमीन को वंजर बना डाली।
प्रकति भी अब अपना रौद्र रूप दिखा रही है।
हमारी करनी का फल हमे सिखा रही है।
संसार की तवाही कभी भूकंप कभी बाढ़ के रूप में नजर आ रही है।
सुधर जाओ अब भी धरती पर रहने वालों।
प्रकति के नियम को सब अच्छे से मानो।
तभी शान्त होगा प्रकति का ये कोप।
और सुख से रह पाएंगे इस धरती पर हम लोग।”
By:Dr Swati Gupta

This poem is dedicated to all the parents who have cute and naughty son.

मेरा बेटा सबसे प्यारा, मेरी आंखों का वो तारा।
सबसे भोला सबसे न्यारा,मेरा है वो राजदुलारा।
दिनभर मस्ती करता रहता,फिर भी मेरे मन को भाता 
उसकी बातें प्यारी लगती, मेरे मन को खुश कर देती।
सुबह सबेरे जब वो उठता, मेरी गोदी में चढ़ जाता।
अपनी नटखट अदाओं से वो, मेरे मन को खूब बहलाता।
मेरा बेटा सबसे प्यारा, मेरी आंखों का वो तारा।
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अपने पापा के संग कुश्ती लड़ता, और अपनी ताकत आजमाता।
उसकी इस मासूम अदा पर, हमको बहुत ही प्यार आता।
पापा जब ऑफिस को जाते, उनकी मोटर साईकिल पर चढ़ जाता।
इधर उधर की सैर कराकर, टॉफ़ी चॉकलेट लेकर आता।
मेरा बेटा सबसे प्यारा, मेरी आखों का वो तारा।
अपनी दीदी को तंग करता, फिर भी दीदी को बहुत भाता।
लेकिन जब वो उसकी चोटी खीचे, दीदी को गुस्सा आ जाता।
दीदी जब मारने को आती, मेरे आँचल में छिप जाता।
माफ़ी मांगकर दीदी से,फिर पहले जैसा वो बनजाता।
मेरा बेटा सबसे प्यारा, मेरी आँखों का वो तारा।
By:Dr Swati Gupta

Tuesday 1 December 2015

This poem shows the emotions.

इस संसार में हम अकेले ही आये हैं, अकेले ही जाएंगे।
खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जायेंगे।
पर इस जहां में अपनी यादें छोड़ जाएँगे।
लोगो की बातों में हमारा ही जिक्र होगा।
अपनों के ख्वाबो में हमारी तस्वीर होगी।
किसी के होंठों पर मुस्कुराहट
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तो किसी की आँखों में आँसू बनकर नजर आएँगे।
इस तरह इस जहां में अपनी यादें छोड़ जाएँगे।
अपने नाम को एक पहचान देकर जाएँगे।
स्वाति नाम को लोगों की जुबां पर छोड़ जाएंगे।
काम कुछ ऐसा करके जाएंगे कि
यहाँ से जाने के बाद भी सबको बहुत याद आएँगे।
इस तरह इस जहां में अपनी यादें छोड़ जाएंगे।
By:Dr Swati Gupta

This poem is about different sides of life.

जिंदगी के भी अजीब रंग है।
नमक है ज्यादा चीनी कम है।
कभी रंगों से भरी लगती है ।
तो कभी बहुत ही बदरंग है।
कभी तो खुशियां हैं।
तो कभी गम ही गम है।
कभी तो मुस्कुराती सी लगती है।
तो कभी आँखे बहुत ही नम है।
कभी प्यार ही प्यार है।
तो कभी नफरत की मार है।
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कभी सोने सी चमकती है
तो कभी लोहे की जंग है।
कभी आशा से परिपूर्ण है।
तो कभी निराशा का भँवर है।
कभी तेज हवा का झौंका है।
तो कभी कटी हुई पतंग है।
कभी बादलों से तेज चलती है।
तो कभी थमा हुआ समुद्र है।
कभी सुरीली तान है।
तो कभी बेसुरा गान है।
इसी का नाम तो जिंदगी है।
जो जीने के सिखाती हजारों ढंग है।
By:Dr Swati Gupta

Sunday 29 November 2015

Through this poem I am praying to god Sun.

“न खेलो तुम आँख मिचोली,सूरज दादा जल्दी आओ।
बादल ने चादर है डाली , बारिश से हुई बदहाली।
कड़ाके की ठण्ड पड़ी है, ठण्ड से हालत पस्त पड़ी है।
सूरज दादा जल्दी आओ, हमको न इतना तड़पाओ।
हाथ पैर सब सुन्न हुए हैँ, रजाई में घुसे हुए हैं।
तापमान भी गिरा हुआ है, मौसम का मिजाज बुरा है।
सूरज दादा जल्दी आओ, आकर मौसम को समझाओ।
इतना गुस्सा सही नहीं है, बच्चों से रूठना ठीक नहीं है।
बच्चों पर तुम तरस तो खाओ,आकर अपने दरश दिखाओ।
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सूरज दादा जल्दी आओ, प्यार भरी गर्मी दे जाओ।
मम्मी मेरी जल्दी उठती हैं, ठण्ड में भी वो काम करती हैं।
उनकी हालत हुई खराब है,सर्दी से बुरा हुआ हाल है।
सूरज दादा जल्दी आओ, अपनी तपिश से ठण्ड भगाओ।
दादी नानी हुई बेहाल हैं, ठण्ड से हुआ खस्ता हाल है।
घुटने का दर्द बड़ा हुआ है,कमर दर्द भी अड़ा हुआ है।
सूरज दादा जल्दी आओ, सबकी खुशियां बापस लाओ।
न खेलो तुम आँख मिचोली, सूरज दादा जल्दी आओ।”
By:Dr Swati Gupta

This poem is dedicated to all the fathers who have sweet daughters.

“शाम को जल्दी आना पापा, ढेर सारे खिलौने लाना पापा।
मेरी गुड़िया लाना पापा, जिसके संग में खेलूँगी।
अपनी गुड़िया की इतनी सी बात, तुम भूल न जाना मेरे पापा।
शाम को मुझे घुमाने ले जाना, पार्क में झूला झुलाने ले जाना।
अपनी गुड़िया की खुशियों को, तुम भूल न जाना मेरे पापा।
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स्कूटर पर मुझे सैर कराना, चॉकलेट आइसक्रीम मुझे दिलाना।
अपनी गुड़िया की मस्ती को, तुम भूल न जाना मेरे पापा।
परियों की कहानी मुझे सुनाना,और प्यार से मुझे सुलाना।
मेरी इतनी सी फरमाइश को, तुम भूल न जाना मेरे पापा।
शाम को जल्दी आना पापा, ढेर सारे खिलौने लाना पापा।”
By:Dr Swati Gupta

This poem is about sweet memories of childhood..

“मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता है, बार बार मुझे अपनी यादों में बुलाता है।
वो चिड़ियों का चहकना, कोयल की मीठी तान सुनाना।
रंग बिरंगी तितलियों का फूलों पर मंडराना
और भवरों का गाना बहुत याद आता है।
मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता है, बार बार मुझे अपनी यादों में बुलाता है।
सुबह सवेरे जल्दी उठजाना, तैयार होकर स्कूल को जाना।
देर से स्कूल पहुचने पर लेट मार्क लग जाना
फिर डायरी नोट के साथ घर आना, बहुत याद आता है,
मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता है, बार बार मुझे अपनी यादों में बुलाता है।
दोस्तों के संग पार्क में खेलना और बागों में जाना,
आम के पेड़ पे यूँ ही चढ़ जाना, अमरूदों को पेड़ से तोड़कर खाना, बहुत याद आता है।
मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता है, बार बार मुझे अपनी यादो में बुलाता है।
वो चाट के ठेले का टनटन करते हुए आना, उसकी आवाज़ सुनते ही मुँह में पानी आ आना जाना
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पानीपूरी को चटकारे लेकर खाना, बहुत याद आता है।
मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता है, बार बार मुझे अपनी यादों में बुलाता है।
टीवी पर दूरदर्शन का आना,और सबका टीवी के आगे आकर बैठजाना।
रविवार को सुबह रामायण, शाम को पिक्चर और बुधवार का चित्रहार बहुत याद आता है।
मुझे मेरा बचपन बहुत याद आता है, बार बार मुझे अपनी यादों में बुलाता है।”
By: Dr Swati Gupta

This poem is about Examination Phobia..

परीक्षा का समय निकट है आया।
जोर जोर से दिल धड़क रहा है बेचारा।
अभी तक समय बिताया खेलकूद में सारा।
पढ़ाई के लिए समय न निकाल पाया जरा सा।
अब हुई सांस की गति तेज है,
जैसे ह्रदयगति रुक जाने को है।
सारे विषय नाच रहे है ऐसे।
चिढा रहे हो मुझको जैसे।
मम्मी की शुरू हुई पाबंदिया।
बंद करो खेलकूद में जाना।
टीवी देखना बंद हुआ है सारा।
पढ़ाई से जुड़ा अब नाता हमारा।
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पापा ने है दी चेतावनी।
पास हुए तो मिलेगा गिफ्ट।
फेल हुए तो टाय टाय फिस।
सारा ध्यान हमने पढ़ाई में लगाया।
फालतू बातों से दिमाग को हटाया।
जब परीक्षा का दिन आया।
दही शक्कर माँ ने हमे खिलाया।
पाँव जब हमने छुए माता-पिता के
ढेरों आशीष पाये थे उनके,
हमारी मेहनत और उनके आशीर्वाद ने रंग दिखाया।
परीक्षा में हमने अब्बल नंबर है पाया।
मम्मी पापा बहुत ही खुश है।
दिए हमको ढेर सारे गिफ्ट हैं।
मम्मी की हटी सारी पावन्दिया।
मिल गयी हमारी वापस खुशियां।
By: Dr Swati Gupta

Another poem on childhood from my compositions..

माँ मुझको सो जाने दो, मेरे बचपन में खो जाने दो।
कितना मधुर समय था वो,उस समय में मुझको जाने दो।
तेरा मीठी लोरी सुनाना, थपकी देकर मुझे सुलाना 
परियों की कहानी सुनाकर, यूँ मेरे दिल को बहलाना।
उन ख्वाबों में मुझे जाने दो, मेरे बचपन में खो जाने दो।
बहन भाई के साथ झगड़ना, रूठना और मनाना।
दिन भर मस्ती, हँसी, ठिठोली करके दिन बिताना।
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उस मस्ती में मुझे जाने दो,मेरे बचपन में खो जाने दो।
दोस्तों के संग खेलना, कूदना और हुड़दंग मचाना।
साइकिल की रेस लगाकर हारना और हराना।
उस खेल में वापस जाने दो, मेरे बचपन में खो जाने दो।
स्कूल में पीरियड को बंक करना और टीचर की नक़ल बनाना।
केन्टीन में साथ बैठकर,समोसे खाकर गप्पे लगाना
उन यादों में मुझे जाने दो, मेरे बचपन में खो जाने दो।
माँ मुझको सो जाने दो, मेरे बचपन में खो जाने दो।
By:Dr Swati Gupta

This poem is against Child Labour..

मुझे बालश्रम से दूर रखो,मुझे मेरा बचपन जीने दो।
नहीं ढोने मुझे ककड़ पत्थर, नहीं करनी मुझे मजदूरी।
नहीं चलाना मुझको हल, नहीं करनी मुझको खेती।
मेरे बाल उम्र पर रहम करो, मुझे मेरा बचपन जीने दो।
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मेरी भी इच्छा है, पढ़ने और लिखने की।
यूनिफॉर्म नया पहनकर, विद्यालय जाने की।
मुझे पढ़ने से मत रोको, मुझे मेरा बचपन जीने दो।
क्या गुनाह किया है मैंने, इतनी तकलीफ उठाता हूँ।
अपने नाजुक कन्धों पर मैं इतना बोझ उठाता हूँ।
मुझपर इतनी सी दया करो, मुझे मेरा बचपन जीने दो।
मैं भी तो छोटा बच्चा हूँ, खेलने की इच्छा रखता हूँ।
दोस्तों के संग मिलजुलकर मस्ती की इच्छा रखता हूँ।
मेरे बचपन को मुझसे मत छीनो,मुझे मेरा बचपन जीने दो।
मुझे बालश्रम से दूर रखो, मुझे मेरा बचपन जीने दो।
By: Dr Swati Gupta

This poem is about the changing faces of a person..

“चेहरे पर मुखोटा लगाये हुए है, इन्सान ने कितने रूप बनाये हुए हैं।
भरोसा जिस जिस पर किया, वही दिल को दुखाये हुए हैं।
खामियां अपनी न बताना किसी को, इस दुनिया में लोग उन्ही खामियों से फायदा उठाये हुए हैं।
किसी को अपना बनाने से पहले जरा विचार करना,
यहाँ अपने भी दुश्मनी का नकाब लगाये हुए हैं।
कल तक दावा करते थे हमसे दोस्ती का,
आज किसी और को दोस्त बनाये हुए हैं।
और फिर हम पर दोस्त न होने का इल्जाम लगाये हुए हैं।
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विश्वास हमारा जिसने है तोड़ा, आज वो ही हम पर विश्वासघाती होने का आरोप लगाये हुए हैं।
सिर्फ भगवान पर विश्वास करना तू यहाँ पर,
वर्ना लोग तो यहाँ अपने हजारों रंग दिखाए हुए हैं।
भरोसा जिस जिस पर किया,वही दिल को दुखाये हुए हैं।”
By: Dr Swati gupta

This poem is about Today’s friendship..

“आजकल दोस्ती के मायने बदल गए।
कल तक जो की जाती थी दिल से,
आज दिमाग का खेल हो गयी।
कल तक जो इमोशन्स में बंधी थी,
आज प्रैक्टिकल हो गयी।
और दोस्ती तो यहाँ मतलब की चीज़ हो गयी।
वो हमको दोस्ती के पैमाने बताते रहे।
हम तो इतने बेबस थे अपनी तकलीफो में,
कि सौ नस्तर चुभवा कर भी मुस्कुराते रहे।
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अपने दोस्तों के घर ख़ुशी के ठहाके लगाते रहे।
और उन्हें अहसास भी न हुआ हमारे दर्द का,
वो हमारे दुःख में भी मुस्कुराते रहे ।
कभी एक दोस्त का दर्द दूसरे दोस्त की आँखों में नजर आता था,
और वो दोस्त के दुःख पर आँसू बहाता था,
क्योंकि वो रिश्ता दिल का रिश्ता बन जाता था।
अब तो दोस्ती टाइम पास की चीज हो गयी,
और दूसरे दोस्त की जरूरतों की मशीन हो गयी।
क्योंकि कल तक जो की जाती थी दिल से,
आज दिमाग का खेल हो गयी।”
By: Dr Swati Gupta

This poem is about the Stars..

“मेरे बच्चे मुझसे पूँछे,माँ तारे क्यों चमकते हैं।
इतने उजले इतने सफ़ेद, क्या वाशिंग मशीन में नहाते हैं।
साबुन की जगह क्या,ये सर्फ़ एक्सेल लगाते हैं।
उनकी प्यारी बातें सुनकर, मैं मंद मंद मुस्काई।
और उनको गोदी में बैठाकर,ये बात समझाई।
आसमान में चंदा मामा ने किया है, रात में भी उजियारा।
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अपनी दूध सी चमक से, तारों को दे दिया है उजाला।
चाँदनी रात में तारे भी, टिम टिम कर चमचमाये।
और अपनी चमक सेआसमान में,सफ़ेद चादर फैलायें।
इसी वजह से ये इतने,उज्जवल और सफ़ेद नजर आये।
इनके प्यारे रूप में बच्चे,इतने मंत्र मुग्ध हो जाएं।
कि आसमान की ओर देखकर, तारों की गिनती गाएँ।
By: Dr Swati Gupta

This poem is dedicated to the person who wants to do something good in life..

अपनी शख्सियत को एक नाम देना चाहती हूँ।
अपने नाम को एक पहचान देना चाहती हूँ।
खो न जाए कहीं गुमनामी के अँधेरे में
उस अँधेरे में भी अपने नाम का प्रकाश देना चाहती हूँ।
जिंदगी है चार दिन की, कुछ काम कर जाये।
ताकि मरने के बाद भी लोगो के दिलों में नाम कर जायें।
कुछ ऎसी ही इंसानियत का काम करना चाहती हूँ।
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अपनी शख्सियत को एक नाम देना चाहती हूँ।
अपने नाम को एक पहचान देना चाहती हूँ।
फेल न हो जाए जिंदगी की परीक्षा में
उस परीक्षा में भी पास होने का अहसास लेना चाहती हूँ।
जिंदगी का सफ़र भरा हुआ है काटों से
उन कांटो में भी मंजिल तक पहुंचने का मुकाम लेना चाहती हूँ।
और फूलो की ख़ुश्बू से जिंदगी को महकाने का इनाम लेना चाहती हूँ।
अपनी शख्सियत को एक नाम देना चाहती हूँ।
अपने नाम को एक पहचान देना चाहती हूँ।

By: Dr Swati Gupta

Plant the trees and save the Earth..

“आज हमें धरती को, फिर से स्वर्ग बनाना है।
हरे वस्त्र इसकेआभूषन, फिर से इसे पहनाना है।
प्रदूषण को दूर भगाकर,इसको स्वच्छ बनाना है
नए नए वृछ लगाकर,इसकी सुंदरता को फिर से आज बढ़ाना है।
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फूलों की खुशवू से इसको, फिर से आज महकाना है।
अपनी धरती माँ को,फिर से गंदगी से मुक्त कराना है।
स्वच्छ भारत अभियान को, मिलजुल कर सफल बनाना है।
घर घर मे फिर से,ये सन्देश फैलाना है।
रोती हुई धरती माँ को,फिर से आज हँसाना है।
आज हमे धरती माँ को, फिर से स्वर्ग बनाना हैँ।”
By: Dr Swati Gupta

This poem is against the Rape and Rapist…

“मासूम बच्चियाँ लुट रही हैं हवस के बाजार में,
रौंदी जा रही हैं उनकी खुशियाँ दुष्टों के हाथ मेँ।
हाय क्या बीती होगी उस मासूम पर,
जब उसकी खुशियों को रौंदा जा रहा था।
तड़पी भी होगी गिड़गिड़ाई भी होगी,
परंतु उन राक्षसों को उसकी चीख सुनाई न दी होगी।
बलात्कार तन का नहीं आत्मा का भी हुआ होगा,
परंतु उन बलात्कारियों को दिखाई न दिया होगा।
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वो तो बना रहे थे शिकार उसको अपनी हवस का,
दुष्टों ने अहसास भी नहीं किया मासूम के दर्द का।
खुलेआम कर रहे थे बलातकार इन्सानियत का,
जैसे डर ही न हो उनको खुदा के खौफ का।
डरी सहमी बच्ची जब अपने घर आई होगी,
मातपिता के दिल ने कैसी चोट खायी होगी।
उनके कराहने की आवाज़ हर माँ को सुनाई दी होगी,
परन्तु उन हवस के राक्षसों को शर्म आई न होगी।
अब इस दरिंदगी के बाजार को रोकना ही होगा।
कानूनों को न केवल सख्त बनाना होगा,
वल्कि हम सभी लोगो को आगे आना होगा,
खुलेआम बलात्कारियों को फाँसी पर लटकाना होगा।
जब फाँसी से उनकी रूह भी कांपेगी और आत्मा दंश मारेगी,
तो शायद ये कुकृत्य करने की उनकी हिम्मत भी पस्त मारेगी।
तभी होगा सुरक्षित भारत का निर्माण और बनेगा मेरा देश महान।।”
By: Dr Swati Gupta

Through this poem, I tried to show the feelings of school going kids..

“माँ मेरे बस्ते के बोझ में मेरा बचपन दब रहा है।
सुबह सबेरे जल्दी उठकर मैं स्कूल जाता हूँ।
देर शाम को थका हुआ स्कूल से वापस आता हूँ।
होमवर्क है इतना सारा मुश्किल से पूरा कर पाता हूँ।
माँ मेरे बस्ते के बोझ में मेरा बचपन दब रहा है।
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विज्ञान गणित के प्रश्न हैं ऐसे चैन न पाने देते हैं।
इतिहास भूगोल में उलझा ऐसा नींद न आने देते हैं।
सामान्य ज्ञान के चक्कर में दिमाग का दही बन रहा है।
माँ मेरे बस्ते के बोझ में मेरा बचपन दब रहा है।
कॉम्पटीशन की होड़ लगी है मै पीछे न रह जाऊँ।
अपनी इस व्यथा को मै किसी और को कैसे समझाऊँ।
यही सोच सोच कर मन ही मन घबराता हूँ ।
माँ मेरे बस्ते के बोझ में मेरा बचपन दब रहा है।
क्या भूलूँ क्या याद करुँ कुछ समझ न आता है।
खेलकूद के लिए भी मुझे समय नहीं मिल पाता है।
मेरी पीड़ा माँ सिर्फ तू ही समझे इसलिए तुझे बताता हूँ।
माँ मेरे बस्ते के बोझ में मेरा बचपन दब रहा है।”
By: Dr Swati Gupta

This poem is dedicated to all the mothers who see their childhood in their daughters..

“मैं अपनी बिटिया में, अपना बचपन देख रही हूँ।
उसकी प्यारी सूरत में, अपनी परछाई देख रही हूँ।
सुबह सबेरे जब उसे उठाऊँ, बारबार आवाज़ लगाऊँ।
पांच मिनट में उठती हूँ माँ, ऐसा कहकर फिर सो जाए।
उसकी इस अदा में मैं, अपना बचपन देख रही हूँ।
जब मैं उसपर गुस्सा हो जाऊँ,तो रोनी सी सूरत वो बनाए।
जब प्यार से उसे बुलाऊँ,मेरे आँचल में छिप जाए।
उसके भोलेपन में मैं, अपना बचपन देख रही हूँ।
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स्कूल से जब वो बापस आये, दिनभर की बाते वो सुनायें।
अपनी प्यारी बातों से वो,मेरे मन को बहलाये।
उसकी प्यारी बातों में मैं, अपना बचपन देख रही हूँ।
पैरों में पहनके पायल, छमछम छमछम तान सुनाए।
कभी गुड़िया के साथ वो खेले, कभी खिलौने उसको भाये
उसके इस प्यारे से खेल में, अपना बचपन देख रही हूँ।
कभी मंद ही मंद मुस्काये, कभी खिलखिलाकर वो हँस जाए
अपनी इस हंसी से वो, पूरे घर की रौनक को बढ़ाये।
उसकी इस मासूम हंसी में मैं, अपना बचपन देख रही हूँ।
कभी डॉक्टर के ख्वाब बुने, तो कभी इंजीनियर बनना चाहे।
नित रोज वो नये नए ख्वाब को, हकीकत में बदलना चाहे।
उसके इन ख्वाबो में मैं, अपना बचपन देख रही हूँ।
उसकी प्यारी सूरत में, अपनी परछाई देख रही हूँ।”
By: Dr Swati Gupta

Saturday 21 November 2015

Plant the trees and save the Earth..

“आज हमें धरती को, फिर से स्वर्ग बनाना है।
हरे वस्त्र इसकेआभूषन, फिर से इसे पहनाना है।
प्रदूषण को दूर भगाकर,इसको स्वच्छ बनाना है
नए नए वृछ लगाकर,इसकी सुंदरता को फिर से आज बढ़ाना है।
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फूलों की खुशवू से इसको, फिर से आज महकाना है।
अपनी धरती माँ को,फिर से गंदगी से मुक्त कराना है।
स्वच्छ भारत अभियान को, मिलजुल कर सफल बनाना है।
घर घर मे फिर से,ये सन्देश फैलाना है।
रोती हुई धरती माँ को,फिर से आज हँसाना है।
आज हमे धरती माँ को, फिर से स्वर्ग बनाना हैँ।”
By: Dr Swati Gupta

Tuesday 17 November 2015

This poem is dedicated to all the mothers who have cute and talkative kids..


“मेरा बेटा बहुत ही मासूम और नादान है।
अपनी प्यारी बातों से करता सबको हैरान है।
उम्र में तो छोटा बच्चा है, लेकिन बातों में सबका दादा है।
एकदिन मुझसे आकर बोला, मम्मी मुझको स्कूल नहीं जाना है।
क्योंकि आया इंटरनेट का जमाना है।
ऐसा क्या है जो इंटरनेट को नहीं आता है।
वो तो सभी विषयों का ज्ञाता है।
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जब कोई प्रश्न समझ न आये।
तो सब गूगल देवता की शरण में जाएँ।
छोटी हो या बड़ी, उसके पास है सब समस्याओं का हल।
क्योंकि गूगल में है सब स्कूलों से ज्यादा अक्ल।
अब मुझे स्कूल जाकर टाइम बेस्ट नहीं करना है।
विकिपीडिआ से पढ़कर मुझको साइंटिस्ट बनना है।
उसकी बातों ने किया हम सबको हैरान है।
छोटा सा बच्चा है वो, लेकिन बातों में महान है।
मेरा बेटा बहुत ही मासूम और नादान है।
अपनी प्यारी बातों से करता सबको हैरान है।”
By: Dr Swati Gupta

Sunday 15 November 2015

This poem is against the Terror attack in Paris…

“आतंक के साये में जी रहा संसार है।
आतंकी हमले में पेरिस का हुआ बुरा हाल है।
गोलियों की आतिशबाजियों ने लगा दिया है लाशो का ढेर।
हर परिवार में मच गया है आतंक का कहर।
इंन्सानियत खत्म हो गयी है इंसान रह गए हैं।
इंसान ही इंसान की मौत का खेल रच रहे हैं।
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शैतानी ताकतों ने जीना किया दुश्वार है।
भगवान तेरे संसार में शैतानो का हुआ राज है।
अब समस्त संसार को एकजुट होकर आगे आना होगा।
आतंकऔर आतंकियों का खात्मा करने का साहस उठाना होगा।
“मैं” की भावना तज कर “हम”की भावना को अपनाना होगा।
इंसान को स्वार्थहीन भाव से इंसान के काम आना होगा।
तभी हम कर पाएंगे वसुंधरा कुटुम्बकम् का निर्माण।
और बना पाएंगे अपने विश्व को महान।”
By: Dr Swati Gupta

Friday 13 November 2015

This poem is dedicated to all the children (Children Day)

"काश मैं फिर से बच्चा बन जाऊँ।
ठुमक ठुमक कर मटक मटक कर, पूरे घर में शोर मचाऊँ।
काश मैं फिर से बच्चा बन जाऊँ।
माँ मुझको गोदी में उठाये,मेरी हर जिद पर वो वारी जाये,
तरह तरह के लोभ दिलाकर, मुझको सब्जी रोटी खिलाये,
दिनभर खेलकर जब थक जाऊँ, तो लोरी गाकर मुझे सुलाये,
मीठे सपनो में खो जाऊँ,काश मै फिर से बच्चा बन जाऊँ।
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शाम को जब पापा घर आएं, उनकी गोदी में चढ़ जाऊँ,
मीठी मीठी बातें सुनाकर,उनका मै दिल बहलाऊँ,
उनकी उंगली पकड़ पकड़कर, इधर उधर की सैर कराऊँ,
फिर झूठमूठ का रोना रोकर,टॉफ़ी चॉकलेट मैं ले आऊँ।
काश मैं फिर से बच्चा बन जाऊँ।
बहन के कपड़े पहन पहन कर, पूरे घर में इतराऊं,
भइया जब मेरी चोटी खींचे,मम्मी से मै डांट लगबाउं,
उनके साथ मैं कॉर्टून देखूँ और संग में पॉपकॉर्न मैं खाऊं,
ठुमक ठुमक कर मटक मटक कर, पूरे घर में शोर मचाऊँ।
काश मै फिर से बच्चा बन जाऊँ।"
By: Dr Swati Gupta

Thursday 12 November 2015

Poem on occasion of Bhai Dooj (Diwali)

“भईया दूज का त्यौहार, लाया खुशियों का उपहार।
हर बहन के दिल में,भाई के लिए उमड़ रहा है प्यार।
दरवाजे पर नजर टिकी है, क्योंकि भैया आने वाला है।
खुशियों की ढेर सारी,सौगात लाने वाला है।
आरती का थाल सजाकर, बहना है तैय्यार।
भाई का स्वागत करने के लिए, है बेक़रार।
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भईया दूज का त्यौहार लाया, खुशियों का उपहार।
भईया जैसे ही घरपरआया, बहन ने बड़े प्यार से गले लगाया।
चौकी पर उसको बिठाकर, माथे पर मंगल तिलक लगाया।
बहन का निच्छल प्यार देखकर, भइया का मन भर आया।
मेरा भइया खुश रहे,हर बहन यही कामना करती है बारम्बार।
भइया दूज का त्यौहार, लाया खुशियों का उपहार।”
 
By: Dr Swati Gupta

Wednesday 11 November 2015

Poem on occsaion of Govardharn (Deepawali)

Poem on occsaion of Govardharn (Deepawali)

“गोवर्धन का त्यौहार मनाता है हर परिवार
दीवाली के अगले दिन आता है ये त्यौहार।
वर्षा के देवराज इंद्र थे अभिमानी। 
उनकी पूजा करता था गोकुल का हर एक प्राणी।
अभिमान चूर करने की खातिर कृष्ण ने लीला रचाई।
गोवर्धन की पूजा करो,बात ये सबके मन में बैठाई।
गोवर्धन की पूजा की सबने मिलकर तैयारी
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कुपित हुए तब इन्द्र देवता,घनघोर बारिश कर डाली।
घमासान बारिश से तब गोकुलवासी घबराये।
उनकी रक्षा की खातिर अंगुली पर कृष्ण गोवर्धन पर्वत उठाये।
ये देख सब गोकुलवासी गोवर्धन की शरण में आये।
इन्द्र का हुआ अभिमान चूर कृष्णा के पास वो आये।
माफ़ी मांगी इंद्र ने तब शत शत शीश नवाये।
सबके साथ फिर मिलजुलकर गोवर्धन पूजा में आये।
उसी दिन से मनाया जाने लगा गोवर्धन का त्यौहार।
जो करता गोवर्धन की पूजा उसको मिलता कृष्ण का प्यार।”
By: Dr Swati Gupta

Tuesday 10 November 2015

Poem on the occasion of Deepawali

“आई दीवाली आई दीवाली,घर घर मे खुशियां लायी दीवाली।
तरह तरह के पकवान बने है, रसगुल्ला, बर्फी, वालूशाई और मेरी पसन्दीदा रसमलाई।
चटपटा भी कुछ कम नहीं है,मठरी, खस्ता और दहीबड़े मुँह में जाने को हैं आतुर।
नीली, पीली, हरी और लाल, लाईटिंग ने किया कमाल।
जगमग जगमग दीप जले हैँ, जैसे हीरे मोती चमके हैं।
मोमबत्तियों ने किया उजाला, सारे अंधकार को है धो डाला।
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हर घर में चहल पहल मची है, ख़ुशियों की एक लहर उठी है।
कोई रंगोली बना रहा है तो कोई घर को सजा रहा है।
हर कोई गणेश लक्ष्मी के स्वागत में हर्षोल्लास दिखा रहा है।
चकरी,अनार, बम और फुलझड़िया, बढ़ा रहे हैँ लोगोँ की खुशियां।
ये खुशियाँ कभी न हो कम, ईश्वर से दुआ करते हैं हम।
ग़रीबों के घर में भी दीवाली हो,किसी की जेब न ख़ाली हो।
ये दीवाली सबकी ख़ुशियों को बढ़ाने वाली हो।
और गम तथा निराशा के अंधकार को मिटाने वाली हो।”
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाए
By: Dr Swati Gupta

Monday 9 November 2015

Poem on the occasion of Narak Chaturdashi (Chhoti Deepawali)

Poem on the occasion of Narak Chaturdashi (Chhoti Deepawali)

“कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को मनाते हैं, हम नरक चतुर्दशी का त्यौहार।
दीपावली के एक दिन पहले, आता है यह त्यौहार।
भगवान कृष्ण ने मारा था, नरकासुर नामक राक्षस को।
और मुक्त किया था उसके बंधन से, सोलह हजार कन्याओं को।
कन्याओं ने विनती की, कृष्ण से बारम्बार।
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बंदी थे उस राक्षस के,इसलिए अब कोई न करेगा हमे स्वीकार।
आपकी शरण में आये हैं हम, कृपा करके दो मुक्ति का द्वार।
उनको सम्मान दिलाने को,कृष्ण ने किया उन सबसे विवाह।
जो प्रभु की शरण में जाता है,भव बंधन से छूट जाता है और पाता है मुक्ति का द्वार।
इसी ख़ुशी में मनाते हैं, हम ये पावन त्यौहार।”
By: Dr Swati Gupta

Sunday 8 November 2015

Poem on Dhanteras, Deepawali


Poem on the occassion of Dhanteras (Deepawali)


“धनतेरस से शुरू होता है,दीवाली का त्यौहार।
कार्तिक की कृष्ण त्रयोदशी को, मनाया जाता है ये त्यौहार।
इस दिन परंपरा है खरीदने की, बर्तन या सोना चाँदी।
क्योंकि ये धन और वैभव के साथ साथ, लाता है खुशहाली।
यमदीप दान के नाम से भी,जाना जाता है ये त्यौहार
ऐसा करने से यमदेव के कोप से, सुरक्षित होता है परिवार।
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साफ सफाई करके इस दिन,घर को स्वच्छ बनाओ
दरवाजे पर रंगोली बनाकर,ख़ुशी के दीप जलाओ।
लक्ष्मी-कुबेर की पूजा करके, लक्ष्मीजी को घर बुलाओ।
प्रेमपूर्वक सब मिलजुलकर, धनतेरस का पर्व मनाओ।”
By: Dr Swati Gupta