Sunday 29 November 2015

Through this poem I am praying to god Sun.

“न खेलो तुम आँख मिचोली,सूरज दादा जल्दी आओ।
बादल ने चादर है डाली , बारिश से हुई बदहाली।
कड़ाके की ठण्ड पड़ी है, ठण्ड से हालत पस्त पड़ी है।
सूरज दादा जल्दी आओ, हमको न इतना तड़पाओ।
हाथ पैर सब सुन्न हुए हैँ, रजाई में घुसे हुए हैं।
तापमान भी गिरा हुआ है, मौसम का मिजाज बुरा है।
सूरज दादा जल्दी आओ, आकर मौसम को समझाओ।
इतना गुस्सा सही नहीं है, बच्चों से रूठना ठीक नहीं है।
बच्चों पर तुम तरस तो खाओ,आकर अपने दरश दिखाओ।
spread-Sunshine
सूरज दादा जल्दी आओ, प्यार भरी गर्मी दे जाओ।
मम्मी मेरी जल्दी उठती हैं, ठण्ड में भी वो काम करती हैं।
उनकी हालत हुई खराब है,सर्दी से बुरा हुआ हाल है।
सूरज दादा जल्दी आओ, अपनी तपिश से ठण्ड भगाओ।
दादी नानी हुई बेहाल हैं, ठण्ड से हुआ खस्ता हाल है।
घुटने का दर्द बड़ा हुआ है,कमर दर्द भी अड़ा हुआ है।
सूरज दादा जल्दी आओ, सबकी खुशियां बापस लाओ।
न खेलो तुम आँख मिचोली, सूरज दादा जल्दी आओ।”
By:Dr Swati Gupta

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