Wednesday 9 December 2015

Emotional conversation between mother and daughter..

"इतनी बुरी हूँ क्या मैं माँ, मुझे भेज रही हो पराये घर।
जब मैं छोटी बच्ची थी, मेरी हर अदा तुझे प्यारी लगती थी।
मुझे गोद में लेने को हर पल, तेरी बाहें मुझे बुलाती थी।
मुझे रोता हुआ देखकर, तेरी जान निकल जाती थी।
अब ऐसा क्या हुआ है माँ, मुझे भेज रही हो पराये घर।
चाहें जिद की हो मैंने गुड़िया की, चाहें की हो जिद नए खिलौनों की।
तूने हर जिद को मेरी पूरा किया, मेरी ख्वाहिशों को दी नई राह।
मेरी खुशियों में ही देख रहीं थी, अपने जीने की एक नयी वजह।
अब ऐसा क्या हुआ है माँ, मुझे भेज रही हो पराये घर।
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वादा करती हूँ मैं माँ, कोई जिद न करुँगी आगे से।
घर के सारे काम करुँगी, तेरा पूरा ख्याल रखूंगी।
तेरी अच्छी बिटिया बनूँगी, कोई अश्क न तेरे आने दूँगी।
तेरी हर बात को मैं मानूँगी माँ, मुझे भेज न यूँ पराये घर।
बाते ऐसी सुनकर बिटिया की, माँ का तो दिल भर आया।
सीने से लगाकर बेटी को,माँ ने उसको यूँ समझाया।
ये रीति है ऐसी दुनिया की, जो हर एक माँ को निभानी है।
बेटी का बसाना है घर,इसलिये भेज रही हूँ पराये घर।
तू तो है मेरी अच्छी गुड़िया , मेरे हर ख्वाब को तूने पूरा किया।
मेरे इस आँचल को तूने,अपने प्यार से भर है दिया।
तू तो है मेरे दिल का टुकड़ा, मेरे अरमानों को तूने पूरा किया
नम आँखों से विदा कर रही हूँ मैं, तुझे भेज रही हूँ पराये घर।
खुश रहे तू हर पल उस घर में,ये दुआ है मेरी अपने रब से।
फूलों की तरह मुस्कुराती रहे तू, काँटो की कोई न रहे जगह
भविष्य तेरा भरा रहे प्यार से, ग़म की कोई न हो वजह।
मंगलमय तेरा जीवन हो, इसलिए भेज रही हूँ पराये घर।"
By:Dr Swati Gupta

This poem is dedicated to my husband..

"तुम अगर साथ हो मेरे, तो जिंदगी का सफ़र आसान होगा।
रास्ते हो कितने भी मुश्किल, तुम हर पल मेरे साथ होंगे।
तेरा साथ पाकर, काँटों में भी फूल खिल जायेंगे।
तेरे प्यार से गम भी, खुशियों में बदल जायेंगे।
तुम अगर साथ हो तो, जिंदगी की हर चुनौतियों में खरे उतर जायेंगे।
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इस अंधेरे में भी, रोशनी के दीप जल जायेंगे।
हम अपने ख्वाबों को भी, हकीकत में बदल जायेंगे।
अपने घर को भी, प्यार से महका पायेंगे।
अपने बच्चों को जीवन की, हर ख़ुशी दे पायेंगे।
तुम अगर साथ हो तो, जिंदगी की हर चुनौतियों में खरे उतर जायेंगे।"

By: Dr Swati Gupta

Monday 7 December 2015

A lesson by flower..

फूल सभी को भाते हैं और कांटे दर्द दे जाते हैं।
इसलिए फूलों की इच्छा रखने वाले काँटो को दूर हटाते हैं।
हम नादान ये समझ नहीं पाते है।
काँटे ही फूलों का सहारा बन जाते हैं।
कोई अस्तित्व न होता फूलों का, अगर काँटे साथ न होते।
इसी तरह अगर दुःख का पता न होता,
सुख का अनुभव कैसे कर पाते।
एक सिक्के के दो है पहलू ।
जब दुःख निराशा लेकर आता है।
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उसके बाद का सुख फिर सबको भाता है।
खुशबू लेनी है फूलों की तो काँटो को भी सहना सीखो।
खुशियां लेनी है जीवन में सुख की।
तो दुःख से डटकर लड़ना सीखो।
यही सन्देश फूल हम सबको काँटे सहकर समझाकर जाता है।
और जिसने इसपर अमल किया वो जीवन की हर खुशियां पाता है।
By:Dr Swati Gupta

This poem is about Today’s friendship..

“आजकल दोस्ती के मायने बदल गए।
कल तक जो की जाती थी दिल से,
आज दिमाग का खेल हो गयी।
कल तक जो इमोशन्स में बंधी थी,
आज प्रैक्टिकल हो गयी।
और दोस्ती तो यहाँ मतलब की चीज़ हो गयी।
वो हमको दोस्ती के पैमाने बताते रहे।
हम तो इतने बेबस थे अपनी तकलीफो में,
कि सौ नस्तर चुभवा कर भी मुस्कुराते रहे।
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अपने दोस्तों के घर ख़ुशी के ठहाके लगाते रहे।
और उन्हें अहसास भी न हुआ हमारे दर्द का,
वो हमारे दुःख में भी मुस्कुराते रहे ।
कभी एक दोस्त का दर्द दूसरे दोस्त की आँखों में नजर आता था,
और वो दोस्त के दुःख पर आँसू बहाता था,
क्योंकि वो रिश्ता दिल का रिश्ता बन जाता था।
अब तो दोस्ती टाइम पास की चीज हो गयी,
और दूसरे दोस्त की जरूरतों की मशीन हो गयी।
क्योंकि कल तक जो की जाती थी दिल से,
आज दिमाग का खेल हो गयी।”
By: Dr Swati Gupta

Thursday 3 December 2015

This poem is against the dowry system in India..

“दहेज़ प्रथा समाज पर भार है,
जिसमें दबा हुआ कन्या का परिवार है।
बेटे के पैदा होते ही घर में खुशियां छा जाती,
पर बेटी दहेज़ के कारण एक समस्या बन जाती।
ये कैसा अत्याचार है ये कैसा अत्याचार है।
पैसों की आड़ में बसता नया परिवार है,
जिसमे कई बार बिकता लड़की वालों का घरवार है।
मातापिता विदा करते हैं बेटी को इस आस में,
कि खुश रहेगी बेटी अपनी ससुराल में,
पर दहेज़ के लोभी उस बेटी को सताते हैं हर हाल में।
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ये कैसा अत्याचार है ये कैसा अत्याचार है।
जब मानसिक पीड़ा बेटी सह नहीं पाती है,
तो आत्महत्या करने को विवश हो जाती है।
कई बार दहेज़ के लालची मानवता से गिर जाते है,
और अग्नि के हवन कुण्ड में बहु की आहुति देने से भी नहीं कतराते हैं।
ये कैसा अत्याचार है ये कैसा अत्याचार है।
दहेज़ प्रथा समाज पर भार है,
जिसमे दबा हुआ कन्या का परिवार है।
इस भार से समाज को मुक्त कराना होगा,
दहेज़ रुपी दानव को मार भगाना होगा।
तभी हम बेटा बेटी के फर्क को मिटा पायेंगे,
और दोनों के जन्म पर समान खुशियाँ मना पाएँगे।”
By: Dr Swati Gupta

Chennai Flood..

“प्रकति का कोप कहर ढा रहा है।
चेन्नई में बाढ़ के रूप में नजर आ रहा है।
दिन गुजर रहे हैं बारिश थमती नही।
सूरज की रौशनी कही दिखती नहीं।
जीवन अस्त व्यस्त हो चला है।
काम सब रुक गए हैं।
सब्जियों के भाव आसमा चढ़ गए हैं।
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कुदरत का कहर कुछ इस तरह मच रहा है।
ग़रीबो का रहना दुश्वर हो चला है।
प्रकति का कोप बढ़ाया है हमने।
पेड़ो को काटकर बिल्डिंगों को बनाया है हमने।
प्रदूषित की है हमने धरती ये सारी।
उपजाऊ जमीन को वंजर बना डाली।
प्रकति भी अब अपना रौद्र रूप दिखा रही है।
हमारी करनी का फल हमे सिखा रही है।
संसार की तवाही कभी भूकंप कभी बाढ़ के रूप में नजर आ रही है।
सुधर जाओ अब भी धरती पर रहने वालों।
प्रकति के नियम को सब अच्छे से मानो।
तभी शान्त होगा प्रकति का ये कोप।
और सुख से रह पाएंगे इस धरती पर हम लोग।”
By:Dr Swati Gupta

This poem is dedicated to all the parents who have cute and naughty son.

मेरा बेटा सबसे प्यारा, मेरी आंखों का वो तारा।
सबसे भोला सबसे न्यारा,मेरा है वो राजदुलारा।
दिनभर मस्ती करता रहता,फिर भी मेरे मन को भाता 
उसकी बातें प्यारी लगती, मेरे मन को खुश कर देती।
सुबह सबेरे जब वो उठता, मेरी गोदी में चढ़ जाता।
अपनी नटखट अदाओं से वो, मेरे मन को खूब बहलाता।
मेरा बेटा सबसे प्यारा, मेरी आंखों का वो तारा।
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अपने पापा के संग कुश्ती लड़ता, और अपनी ताकत आजमाता।
उसकी इस मासूम अदा पर, हमको बहुत ही प्यार आता।
पापा जब ऑफिस को जाते, उनकी मोटर साईकिल पर चढ़ जाता।
इधर उधर की सैर कराकर, टॉफ़ी चॉकलेट लेकर आता।
मेरा बेटा सबसे प्यारा, मेरी आखों का वो तारा।
अपनी दीदी को तंग करता, फिर भी दीदी को बहुत भाता।
लेकिन जब वो उसकी चोटी खीचे, दीदी को गुस्सा आ जाता।
दीदी जब मारने को आती, मेरे आँचल में छिप जाता।
माफ़ी मांगकर दीदी से,फिर पहले जैसा वो बनजाता।
मेरा बेटा सबसे प्यारा, मेरी आँखों का वो तारा।
By:Dr Swati Gupta

Tuesday 1 December 2015

This poem shows the emotions.

इस संसार में हम अकेले ही आये हैं, अकेले ही जाएंगे।
खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जायेंगे।
पर इस जहां में अपनी यादें छोड़ जाएँगे।
लोगो की बातों में हमारा ही जिक्र होगा।
अपनों के ख्वाबो में हमारी तस्वीर होगी।
किसी के होंठों पर मुस्कुराहट
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तो किसी की आँखों में आँसू बनकर नजर आएँगे।
इस तरह इस जहां में अपनी यादें छोड़ जाएँगे।
अपने नाम को एक पहचान देकर जाएँगे।
स्वाति नाम को लोगों की जुबां पर छोड़ जाएंगे।
काम कुछ ऐसा करके जाएंगे कि
यहाँ से जाने के बाद भी सबको बहुत याद आएँगे।
इस तरह इस जहां में अपनी यादें छोड़ जाएंगे।
By:Dr Swati Gupta

This poem is about different sides of life.

जिंदगी के भी अजीब रंग है।
नमक है ज्यादा चीनी कम है।
कभी रंगों से भरी लगती है ।
तो कभी बहुत ही बदरंग है।
कभी तो खुशियां हैं।
तो कभी गम ही गम है।
कभी तो मुस्कुराती सी लगती है।
तो कभी आँखे बहुत ही नम है।
कभी प्यार ही प्यार है।
तो कभी नफरत की मार है।
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कभी सोने सी चमकती है
तो कभी लोहे की जंग है।
कभी आशा से परिपूर्ण है।
तो कभी निराशा का भँवर है।
कभी तेज हवा का झौंका है।
तो कभी कटी हुई पतंग है।
कभी बादलों से तेज चलती है।
तो कभी थमा हुआ समुद्र है।
कभी सुरीली तान है।
तो कभी बेसुरा गान है।
इसी का नाम तो जिंदगी है।
जो जीने के सिखाती हजारों ढंग है।
By:Dr Swati Gupta