Sunday 29 November 2015

Another poem on childhood from my compositions..

माँ मुझको सो जाने दो, मेरे बचपन में खो जाने दो।
कितना मधुर समय था वो,उस समय में मुझको जाने दो।
तेरा मीठी लोरी सुनाना, थपकी देकर मुझे सुलाना 
परियों की कहानी सुनाकर, यूँ मेरे दिल को बहलाना।
उन ख्वाबों में मुझे जाने दो, मेरे बचपन में खो जाने दो।
बहन भाई के साथ झगड़ना, रूठना और मनाना।
दिन भर मस्ती, हँसी, ठिठोली करके दिन बिताना।
Childhood_Memories_Wallpaper__yvt2.jpg
उस मस्ती में मुझे जाने दो,मेरे बचपन में खो जाने दो।
दोस्तों के संग खेलना, कूदना और हुड़दंग मचाना।
साइकिल की रेस लगाकर हारना और हराना।
उस खेल में वापस जाने दो, मेरे बचपन में खो जाने दो।
स्कूल में पीरियड को बंक करना और टीचर की नक़ल बनाना।
केन्टीन में साथ बैठकर,समोसे खाकर गप्पे लगाना
उन यादों में मुझे जाने दो, मेरे बचपन में खो जाने दो।
माँ मुझको सो जाने दो, मेरे बचपन में खो जाने दो।
By:Dr Swati Gupta

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