“प्रकति का कोप कहर ढा रहा है।
चेन्नई में बाढ़ के रूप में नजर आ रहा है।
दिन गुजर रहे हैं बारिश थमती नही।
सूरज की रौशनी कही दिखती नहीं।
जीवन अस्त व्यस्त हो चला है।
काम सब रुक गए हैं।
सब्जियों के भाव आसमा चढ़ गए हैं।
चेन्नई में बाढ़ के रूप में नजर आ रहा है।
दिन गुजर रहे हैं बारिश थमती नही।
सूरज की रौशनी कही दिखती नहीं।
जीवन अस्त व्यस्त हो चला है।
काम सब रुक गए हैं।
सब्जियों के भाव आसमा चढ़ गए हैं।
कुदरत का कहर कुछ इस तरह मच रहा है।
ग़रीबो का रहना दुश्वर हो चला है।
प्रकति का कोप बढ़ाया है हमने।
पेड़ो को काटकर बिल्डिंगों को बनाया है हमने।
प्रदूषित की है हमने धरती ये सारी।
उपजाऊ जमीन को वंजर बना डाली।
प्रकति भी अब अपना रौद्र रूप दिखा रही है।
हमारी करनी का फल हमे सिखा रही है।
संसार की तवाही कभी भूकंप कभी बाढ़ के रूप में नजर आ रही है।
सुधर जाओ अब भी धरती पर रहने वालों।
प्रकति के नियम को सब अच्छे से मानो।
तभी शान्त होगा प्रकति का ये कोप।
और सुख से रह पाएंगे इस धरती पर हम लोग।”
By:Dr Swati Gupta
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