Sunday 29 November 2015

This poem is dedicated to the person who wants to do something good in life..

अपनी शख्सियत को एक नाम देना चाहती हूँ।
अपने नाम को एक पहचान देना चाहती हूँ।
खो न जाए कहीं गुमनामी के अँधेरे में
उस अँधेरे में भी अपने नाम का प्रकाश देना चाहती हूँ।
जिंदगी है चार दिन की, कुछ काम कर जाये।
ताकि मरने के बाद भी लोगो के दिलों में नाम कर जायें।
कुछ ऎसी ही इंसानियत का काम करना चाहती हूँ।
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अपनी शख्सियत को एक नाम देना चाहती हूँ।
अपने नाम को एक पहचान देना चाहती हूँ।
फेल न हो जाए जिंदगी की परीक्षा में
उस परीक्षा में भी पास होने का अहसास लेना चाहती हूँ।
जिंदगी का सफ़र भरा हुआ है काटों से
उन कांटो में भी मंजिल तक पहुंचने का मुकाम लेना चाहती हूँ।
और फूलो की ख़ुश्बू से जिंदगी को महकाने का इनाम लेना चाहती हूँ।
अपनी शख्सियत को एक नाम देना चाहती हूँ।
अपने नाम को एक पहचान देना चाहती हूँ।

By: Dr Swati Gupta

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