“दहेज़ प्रथा समाज पर भार है,
जिसमें दबा हुआ कन्या का परिवार है।
बेटे के पैदा होते ही घर में खुशियां छा जाती,
पर बेटी दहेज़ के कारण एक समस्या बन जाती।
ये कैसा अत्याचार है ये कैसा अत्याचार है।
पैसों की आड़ में बसता नया परिवार है,
जिसमे कई बार बिकता लड़की वालों का घरवार है।
मातापिता विदा करते हैं बेटी को इस आस में,
कि खुश रहेगी बेटी अपनी ससुराल में,
पर दहेज़ के लोभी उस बेटी को सताते हैं हर हाल में।
जिसमें दबा हुआ कन्या का परिवार है।
बेटे के पैदा होते ही घर में खुशियां छा जाती,
पर बेटी दहेज़ के कारण एक समस्या बन जाती।
ये कैसा अत्याचार है ये कैसा अत्याचार है।
पैसों की आड़ में बसता नया परिवार है,
जिसमे कई बार बिकता लड़की वालों का घरवार है।
मातापिता विदा करते हैं बेटी को इस आस में,
कि खुश रहेगी बेटी अपनी ससुराल में,
पर दहेज़ के लोभी उस बेटी को सताते हैं हर हाल में।
ये कैसा अत्याचार है ये कैसा अत्याचार है।
जब मानसिक पीड़ा बेटी सह नहीं पाती है,
तो आत्महत्या करने को विवश हो जाती है।
कई बार दहेज़ के लालची मानवता से गिर जाते है,
और अग्नि के हवन कुण्ड में बहु की आहुति देने से भी नहीं कतराते हैं।
ये कैसा अत्याचार है ये कैसा अत्याचार है।
दहेज़ प्रथा समाज पर भार है,
जिसमे दबा हुआ कन्या का परिवार है।
इस भार से समाज को मुक्त कराना होगा,
दहेज़ रुपी दानव को मार भगाना होगा।
तभी हम बेटा बेटी के फर्क को मिटा पायेंगे,
और दोनों के जन्म पर समान खुशियाँ मना पाएँगे।”
By: Dr Swati Gupta
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