“मासूम बच्चियाँ लुट रही हैं हवस के बाजार में,
रौंदी जा रही हैं उनकी खुशियाँ दुष्टों के हाथ मेँ।
हाय क्या बीती होगी उस मासूम पर,
जब उसकी खुशियों को रौंदा जा रहा था।
तड़पी भी होगी गिड़गिड़ाई भी होगी,
परंतु उन राक्षसों को उसकी चीख सुनाई न दी होगी।
बलात्कार तन का नहीं आत्मा का भी हुआ होगा,
परंतु उन बलात्कारियों को दिखाई न दिया होगा।
रौंदी जा रही हैं उनकी खुशियाँ दुष्टों के हाथ मेँ।
हाय क्या बीती होगी उस मासूम पर,
जब उसकी खुशियों को रौंदा जा रहा था।
तड़पी भी होगी गिड़गिड़ाई भी होगी,
परंतु उन राक्षसों को उसकी चीख सुनाई न दी होगी।
बलात्कार तन का नहीं आत्मा का भी हुआ होगा,
परंतु उन बलात्कारियों को दिखाई न दिया होगा।
वो तो बना रहे थे शिकार उसको अपनी हवस का,
दुष्टों ने अहसास भी नहीं किया मासूम के दर्द का।
खुलेआम कर रहे थे बलातकार इन्सानियत का,
जैसे डर ही न हो उनको खुदा के खौफ का।
डरी सहमी बच्ची जब अपने घर आई होगी,
मातपिता के दिल ने कैसी चोट खायी होगी।
उनके कराहने की आवाज़ हर माँ को सुनाई दी होगी,
परन्तु उन हवस के राक्षसों को शर्म आई न होगी।
अब इस दरिंदगी के बाजार को रोकना ही होगा।
कानूनों को न केवल सख्त बनाना होगा,
वल्कि हम सभी लोगो को आगे आना होगा,
खुलेआम बलात्कारियों को फाँसी पर लटकाना होगा।
जब फाँसी से उनकी रूह भी कांपेगी और आत्मा दंश मारेगी,
तो शायद ये कुकृत्य करने की उनकी हिम्मत भी पस्त मारेगी।
तभी होगा सुरक्षित भारत का निर्माण और बनेगा मेरा देश महान।।”
By: Dr Swati Gupta
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