किस्मत पर इतना गुरुर न करना,
ये कभी आसमां पर बैठाती है,
तो कभी जमीन को दिखाती है,
जिनको कभी था ग़ुरूर अपने पैसे पर,
पांच सौ और हज़ार की गड्डी दिखाते थे,...
उसके दम पर गरीबों पर रौब जमाते थे,
चादर की जगह ये नोट बिछाते थे,
मलमल के बिस्तर की शोभा बढ़ाते थे
आज यही रद्दी के टुकड़े बन गए,
कल तक जिनसे फूलो की खुशबू आती थी,
आज वही काँटो की सेज बन गए,
लोगों की रातों की नींद उड़ गयी,
काले धन को मान लिया था अच्छी किस्मत,
कागज के टुकड़े बनते ही भाग्यहीन हो गए,
जिन्होंने किया था विश्वास अपने कर्म और मेहनत पर,
आज सिर्फ वो ही यहाँ पर चैन की नींद सो रहे,
वो ही यहाँ पर चैन की नींद सो रहे।।
By: Dr Swati Gupta
ये कभी आसमां पर बैठाती है,
तो कभी जमीन को दिखाती है,
जिनको कभी था ग़ुरूर अपने पैसे पर,
पांच सौ और हज़ार की गड्डी दिखाते थे,...
उसके दम पर गरीबों पर रौब जमाते थे,
चादर की जगह ये नोट बिछाते थे,
मलमल के बिस्तर की शोभा बढ़ाते थे
आज यही रद्दी के टुकड़े बन गए,
कल तक जिनसे फूलो की खुशबू आती थी,
आज वही काँटो की सेज बन गए,
लोगों की रातों की नींद उड़ गयी,
काले धन को मान लिया था अच्छी किस्मत,
कागज के टुकड़े बनते ही भाग्यहीन हो गए,
जिन्होंने किया था विश्वास अपने कर्म और मेहनत पर,
आज सिर्फ वो ही यहाँ पर चैन की नींद सो रहे,
वो ही यहाँ पर चैन की नींद सो रहे।।
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